Saturday, August 15, 2009

भावनायें

आज कल भावनाएं, बिकती हैं बाज़ार में;
कीमत होती है झूटी मुस्कराहट, किसी काफ़ी शॉप पर


आज मुलाकात हुई थी मेरी एक अजनबी से
जो अपनी भावनाएं बेचने को तैयार था
मै शायद खरीद भी लेता
पर मेरा इमां ही बीमार था।
टटोलता रहा मैं ख़ुद को, उसकी भावना भी देखीं
शायद जो कुछ उपहारों और बार पर कुर्बान था;
हमे भी देखना था, कुछ समजना भी था हमें
मै बढ़ा,
किसी काफ़ी शॉप की तरफ़, उनके साथ हो कर
.........
दिन गुजरता गया...और शाम हुई
मुझे मिल नही पाई शायद, जिसकी हमे तालास थी
....
भावना तो थी ही नही उसमे,
सूख सी गई थी शायद,
एक अक्स सा बचा था कहीं,
कृतिमता साफ़ झलक रही थी.

तादात

बड़ों को प्रणाम और छोटों को प्यार, बचे बराबर वालों को नमस्कार...

अनगिनत हमलों के बावजूत भी जस्बा कम नही हुआ

हम अकेले नही खड़े थे कल की शाम, किले के बहार

इर्द गिर्द देखा तो एक तादाद सी दिखी

एक बेहद बेखौफ सी तादात...

ना जाने आकबरों में क्या क्या लिखा था

ना जाने समाचारों में क्या क्या दिखा था

कई धर्मों राज्यों के लोग थे वहां

कई धर्मों का समूह था वहां

एक साथ...हाँ एक साथ ।









Thursday, August 13, 2009

हमारे नव युवकों एवं युवतियों के लिए

प्यारे दोस्तों एवं (जो हमे दुश्मन मानता है )
मैं ये पोस्ट आप सब से कुछ बतीन बताने के लिए लिख रहा हूँ। हिन्दी में लिखने की एक वजह है, वो ये की मई ये बातें एक हिन्दुस्तानी नागरिक से ही बंटाना चाहता हूँ।
आप सभी जब पैदा होते हैं, तो आप के घर में भावनाएं उत्सर्जित होती हैं। कईयों के घर में खुसी और बहुत कम के घरों में दुःख का आलम होता है। जो भी हो, आप जनम तो ले चुके हैं। रिश्ते बनना शुरू हो जाते हैं, उस वक्त से जब आपका जनम होता है तभी से। बेहर्हर चोटी उमर में सायद ये समाज में नही अत है, पर जैसे जैसे हम बड़े होने लगते हैं, समाज को, घर को, दोस्तों को और अन्य सभी लोगों से मिलते हैं, हम सबसे किसी न किसी रूप से एक रिश्ता बनते कहते जाते हैं। हम कुछ अजीवित चीजों से भी रिश्तें बना लेते हैं, जैसे टीवी, फ़ोन आदि।
हम इन सभी चीजों से (जीवित और मृत) से कुछ इस तरह भावनात्मक तरीके से जुड़ने लगते हैं, की हम अपने असली अस्तित्व को ही भूल जाते हैं।
दरअसल हम मोह माया और भावनाएं बना लेते हैं, इन साडी चीजों के साथ रहते रहते। क्या आप जानते हैं की किसी भी इन्सान में भावनाएं क्या योगदान अदा करती हैं ?
भावनाएं इन्सान को इन्सान बनाये रखती हैं, उसी समय ये भावनाएं इन्सान के रास्ते की सबसे बड़ी अड़चन होती हैं।
इस लिए निराकरद ये है की, इन्सान में भावनाएं मूलतः इंसानों क ही वजह से बनता है, जिसके इर्द गिर्द रहते हैं वो। अतः हमे बहुत सोच समाज के किसी भी व्यक्ति से नाता बनाना चाहिये, ताकि हमारे आदर जिस भावना का अविष्कार हो वो हमें रूकावट न दे बल्कि सहयोगी हो हमे हमारे लक्ष्य तक जाने में।
निक्शल और पवित्र रिश्ते और नाते ऐसा करने में सहयोगी होते हैं।
माँ बाप, भाई बहिन और परम मित्रों के साथ बने रिश्ते ऐसा मार्ग प्रसस्थ करते हैं।
व्यावासिक स्तर पर हर एक रिश्ता लाजमी है परन्तु निकटतम रिश्ते बहुत सोच समाज कर बनने चाहिये.

आशिक

मैं एक आशिक नही बनाना कहता था
मै ये सब नही सहना कहता था
पता नही ऐसा क्यूँ हुआ
मैंने ऐसा क्यूँ किया
मुहब्बत कुत्ते से की होती मैंने
तो वफ़ा मिलती
इंसानों से की, नही मिली
शायद गलती हुई हमे इन्सान पहचानने में
किसी के भोले चेहरे क पीछे की हकीकत जानने में
पर वक्त रहते ही सब सही होगा
मैं समज गया
की जानवर वफादार होते हैं
ये जुबान वाले बहुत गद्दार होते हैं

इमां और मुहब्बत

उसे मुहब्बत में बेईमानी का हुनर अत था
मेरी बेईमानी का भी एक इमां था
उसने इश्क किया, धोका दिया
मैंने बस वफ़ा की, जितनी हो सकी
जान देना ही इश्क नही होता है
इमां से इश्क करना इश्क होता है
ऐसा मानना था मेरा
पर सब कुछ ग़लत था
आज कल लोग, बेईमानी पसंद करते हैं
इश्क में गद्दारी पसंद करते हैं
मैं ये सोचता हूँ हर एक लम्हा
ये दुनिया मेरे लायक नही
खुश ठाट मै, जब मै था तनहा.

प्यार आज कल

मैंने इश्क का एक चेहरा यूँ देखा
ख़ुद से ख़ुद को जुदा होते देखा
कुछ समज में नही आ रहा था मेरे
की मैंने ख्वाब देखा या हकीकत देखा
एक सक्श से मुहब्बत थी हमें
एक सक्श की इबादत की हमने
दिन रात बस उसी में लगा रहा
ख़ुद को बस कुर्बान करता रहा
एक दिन आया, जब वो किसी और की हो गई
हमे अकेला छोर गई
बहुत रोया, नही सोया
बहुत तडपा, उसने सब कुछ था हड़पा
चीखा चिल्लाया
कुछ हाथ में न आया
फिर बैठ गया मै
सब कुछ छोड़ कर
ये मन कर की मैंने
जो कुछ देखा
वो एक ख्वाब था
एक एहसास था।

इश्क

इश्क की सच्चाई बहुत कड़वी होती है
इश्क मिठाई से अच्छी होती है
इश्क कर के एक बार देख लो ए दोस्त
इश्क में रूसवासी भी बहुत अच्छी होती है
इश्क मैंने जब किया, नादान था मै
इश्क हुआ और होता चला गया
इश्क न जाने हमसे क्या क्या करवा बैठा
इश्क ने हमे आदमी से हिजडा बना बैठा
सच ही कहा है किसी ने क्या खूब
इश्क बीमारी है जिसमे मर्द, नामर्द बन जाता है
इश्क ऐसी चीज है जो
रंक को रजा, और रजा को रंक बना जाता hai